Jaipur : यदि आपने बैंक से ऋण लिया है और आपको अधिकृत एजेंसी के माध्यम से ऋण वसूलने के मामले में परेशानी हो रही है, तो वाणिज्यिक अदालत का यह निर्णय आपके लिए राहतदायक साबित हो सकता है। बैंक ऋण के एक महत्वपूर्ण मामले में, जयपुर के वाणिज्यिक अदालत नंबर 1 ने बैंकों और एनबीएफसी द्वारा आयोजित की गई 325 विवादित मामलों को खारिज कर दिया है। अदालत ने बैंकों द्वारा एकतरफा नियुक्त किए गए मध्यस्थ की तरफ से आयोजित पुरस्कारों के खिलाफ विरोध किया है। न्यायाधीशों ने कहा कि कानून के अनुसार, मध्यस्थ की नियुक्ति को दोनों पक्षों की सहमति से होना आवश्यक है।
बैंकों की तरफ से 50 से अधिक वकीलों ने अदालत में बैंकों का पक्ष रखा। हालांकि, अदालत ने बैंकों द्वारा एकतरफा नियुक्त किए गए ऑर्बिट्रेटर या मध्यस्थ की नियम विरुद्ध मानते हुए, बैंकों और एनबीएफसी की 325 याचिकाओं को खारिज करने का निर्णय दिया है, जिससे लोन लेने वाले व्यक्तियों को राहत मिल सकती है। इसका मतलब है कि उन्हें मध्यस्थ के नाम पर एकतरफा हस्ताक्षर करने की आवश्यकता नहीं होगी। वाणिज्यिक अदालत ने यह निर्णय लिया क्योंकि जनरल पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर के बैंकों और वित्तीय कंपनियों ने लोगों को सस्ते और आकर्षक ऋण का प्रस्ताव देकर उन्हें मध्यस्थ के नाम पर एकतरफा हस्ताक्षर करवाया था। यहाँ तक कि बिना मध्यस्थ के नियुक्ति के ऋण वसूलने की सबसे अधिक शिकायतें निजी वित्तीय सेवाओं की तरफ से आई थीं।
कानून की दृष्टि में एकतरफा कार्रवाई: बैंक द्वारा
“सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता नमन माहेश्वरी ने आपत्तिजनक तरीके से ऋण लेने वालों की ओर से सार्वजनिक सेक्टर के बैंक और निजी वित्त संस्थाओं के द्वारा सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ अन्य राज्यों के आदेशों की अवहेलना करते हुए, बिना बैंकों की ऋण वसूली को गलत ठहराया है। नमन माहेश्वरी ने बताया कि नियमों के अनुसार ऋण लेने वाले की सहमति से ही बैंक किसी को एक तरफ़ा विवाद-समाधान के रूप में एक तटरक्षक या अर्बिट्रेटर का नियुक्त कर सकता है। बैंकों और निजी वित्त संस्थाओं द्वारा एकतरफा नियुक्त मध्यस्थों से सभी फैसले बैंक के हित में जा रहे हैं। विभिन्न बैंकों के 325 विवादित मामलों में न्यायपालिका ने बैंक के पक्ष में ही निर्णय पारित किए हैं, जिसके परिणामस्वरूप बैंक साक्षर कानून के साथ ऋण लेने वालों के प्रति एकतरफा कार्रवाई के प्रति आग्रही हो जाते हैं। वहीं, नियमानुसार मध्यस्थ या एक तटरक्षक को बैंक और ऋण लेने वाले की सहमति से ही नियुक्त किया जाता है।
कलकत्ता, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय भी पहले चुके हैं आदेश:
“साथ ही, बैंकों के साथ-साथ वित्त संस्थाएं ऋण वसूली के मामलों में अपने विचार से मध्यस्थों की नियुक्ति करने के बजाय ऋण की वसूली के सभी मामलों में न्यायपालिका ने बैंक के हित में ही निर्णय पारित किए हैं। बैंकों द्वारा ऋण लेने वाले की सहमति के बिना एकतरफा मध्यस्थ की नियुक्ति करने से ऋण लेने वाले को उनकी सुनवाई का अवसर नहीं मिलता है, लेकिन उन्हें ऋण वसूली की प्रक्रिया जारी रहती है। सर्वोच्च न्यायालय के साथ-साथ कलकत्ता, दिल्ली, और हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय जैसे भारतीय उच्च न्यायालयों ने भी ऋण लेने वाले और बैंक की पूर्ण सहमति के आधार पर ही मध्यस्थ की नियुक्ति के निर्देश जारी किए हैं।”