BSP सुप्रीमो मायावती द्वारा पहले ही लोकसभा चुनाव अपने दम पर लड़ने की बात की थी। पर पंजाब में समझौते को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं थी। पंजाब में लोकसभा चुनाव के लिए शिरोमणि अकाली दल और भाजपा में दोबारा समझौता होने की चर्चाएं तेज हो रही है । वहीं, शिरोमणि अकाली दल की साझेदार बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने उनसे नाता तोड़ लिया है। बसपा लीडरशिप ने अपने वर्करों को अकाली दल के नेताओं से दूरी बनाने के आदेश दिए है। साथ ही अब बसपा ने पंजाब में भी अकेले ही चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है।
चंडीगढ़ में BSP के केंद्रीय को-ऑर्डिनेटर पंजाब, चंडीगढ़ हरियाणा के इंचार्ज रणधीर सिंह बेनीपाल की मजूदगी में हुई बैठक में इस मुद्दे पर मंथन किया चार घंटे तक चली मीटिंग में सर्वसम्मति से फैसला लिया गया कि शिरोमणि अकाली BSP को लगातार नजर अंदाज करते हुए भारतीय जनता पार्टी से गठजोड़ कर रही है। ऐसे में अब एक साथ रहने का कोई सवाल नहीं है।
कहा गया कि दोनों पार्टियों की मीटिंग तक नहीं हो रही है। साथ ही अकाली दल द्वारा अपने प्रोग्राम में बसपा नेताओं को शामिल तक नहीं किया जाता
2022 विधान सभा चुनावो में एक साथ आए थे
तीन कृषि कानूनों के विरोध में भाजपा और शिअद की राह विधानसभा चुनाव के समय अलग हो गई थी। इसके बाद अकाली दल और बसपा में गठबंधन हुआ था। दोनों दलों ने 2022 का विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा था, जिसमें अकाली दल को तीन और बसपा को एक सीट मिली। 2017 के मुकाबले इस साल बसपा का वोट शेयर भी बढ़ा था। 2017 में जहां 1.5 प्रतिशत वोट BSP को पड़े थे, वहीं 2022 में बसपा का वोट शेयर बढ़ कर 1.77% हो गया था। ज़ब के अकाली दल का वोट प्रतिशत कम रहा। लेकिन काफी समय से दोनों के रिश्ते ठीक नहीं चल रहे थे।
25 साल बाद हुआ गठबंधन BSP का खाता खुला
इस से पहले बसपा ने शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर 1996 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। उस समय गठबंधन ने राज्य की 13 लोकसभा सीटों में से 11 पर जीत दर्ज की थी। इस के बाद बसपा ने पहली बार 2022 के चुनाव में पंजाब में अपना खाता खोला था। 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 11 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन एक को छोड़कर बाकी कोई भी जमानत हीं बचा पाया था। 2012 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो बसपा ने 109 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे, लेकिन सभी की जमानत जब्त हो गई थी।