हालांकि भाजपा ने उनकी पत्नी परनीत कौर को पटियाला लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है। परनीत कौर यहां से मौजूदा सांसद भी हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर बेबाकी से अपनी बात रखने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह का चुनावी परिदृश्य से गायब होना सभी को खल रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह इस बार लोकसभा चुनाव में परिदृश्य से गायब हैं। इससे लोगों को उनकी कमी खल रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गुरुवार को पटियाला में परनीत कौर समेत पांच भाजपा प्रत्याशियों के प्रचार करने पहुंचे थे। मोदी ने जैसे ही पाकिस्तान का मुद्दा उठाया तो सबको पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की याद आ गई।
वह कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे और 14 फरवरी, 2019 को पंजाब विधानसभा का बजट सत्र चल रहा था। इस दौरान सूचना आई कि आतंकियों ने पुलवामा में हमला करके 41 सैनिकों को बलिदान कर दिया है। 1963 से 1966 तक भारतीय सेना में सेवा कर चुके कैप्टन इससे काफी विचलित हुए। उन्होंने विधानसभा के पटल पर ही यह मांग रख दी कि उन्होंने 41 मारे हैं तो हमें 82 मारने चाहिए।
यह पहला मौका नहीं था जब कैप्टन सैनिकों के साथ खड़े हुए हों। पुलवामा आतंकी हमले के खिलाफ भारतीय सेना ने बालाकोट में एयर स्ट्राइक किया तो कैप्टन कांग्रेस की तरफ से पहले ऐसे वरिष्ठ नेता थे, जिन्होंने इसका समर्थन किया था। इसके लिए वह कांग्रेस हाईकमान के अतिप्रिय नवजोत सिंह सिद्धू को भी आड़े हाथ लेने से नहीं चूके थे। उस समय इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे और बतौर क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू उनके ताजपोशी समारोह में गए थे।
इमरान खान ने जब सिद्धू को अपनी ताजपोशी का न्योता भेजा था, तभी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा था कि मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि सिद्धू को वहां नहीं जाना चाहिए। एयर स्ट्राइक के बाद जब सिद्धू के स्वर पाकिस्तान के प्रति नरम थे तो कैप्टन ने कहा था, वह क्रिकेटर हैं और मैं सैनिक।
अब कैप्टन अमरिंदर सिंह भाजपा के नेता हैं। उम्र और स्वास्थ्य के कारण राजनीतिक परिदृश्य से गायब हैं। वह अपनी पत्नी भाजपा प्रत्याशी परनीत कौर की रैली में भी नहीं पहुंचे। कांग्रेस का मुख्यमंत्री होते हुए कैप्टन पर हमेशा ही पीएम नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का करीबी होने का आरोप लगता रहा था।
कैप्टन ने कभी इसकी परवाह नहीं की। वह हमेशा कहते रहे कि पंजाब पाकिस्तान की सीमा के साथ लगता है। पड़ोसी देश हमेशा ही पंजाब की शांति को भंग करने की ताक में रहता है। जब 1984 में श्री हरिमंदिर साहिब परिसर में सेना की कार्रवाई हुई थी तो कैप्टन ही थे, जिन्होंने कांग्रेस सरकार के इस निर्णय के खिलाफ लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था।