जालंधर में पिछले साल जब लोकसभा उपचुनाव हुए थे, तब वह चुनाव जीतने के बाद आम आदमी पार्टी ने पंजाब में नगर निगमों के चुनाव करवाने का मन बना लिया था जिसके लिए वार्ड बंदी की प्रक्रिया को भी फाइनल टच दे दिया गया था। तब माना जा रहा था कि उपचुनाव खत्म होने के 2 महीने के भीतर निगमों के चुनाव करवा लिए जाएंगे परंतु ऐसा हो नहीं सका और सरकार ने आम चुनावों की तैयारी शुरू कर दी।
अब लोकसभा चुनाव भी संपन्न हो चुके हैं इसके बावजूद निगम चुनावों को लेकर अनिश्चितता बरकरार है। जालंधर नगर निगम की बात करें तो पिछले दो सालों के दौरान जालंधर के आम आदमी पार्टी के नेतृत्व में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। कभी जिन नेताओं की तूती बोला करती थी वह अब निचले पायदान पर चले गए हैं। जबकि कई तो सर्वोच्च शिखर पर पहुंच गए हैं ।
ऐसे में जालंधर निगम हेतु टिकटों की दावेदारी को लेकर आम आदमी पार्टी के ज्यादातर नेता आशा और निराशा के चक्रव्यूह में फंसे हुए दिख रहे हैं । आम आदमी पार्टी के बदल रहे समीकरणों को देखते हुए कई नेता तो खेमे बदलने को मजबूर हो गए हैं और कई टिकटों का जुगाड़ लगाने के लिए नए नए गॉडफादर ढूंढ रहे हैं।
माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में निगम की टिकटों को लेकर आम आदमी पार्टी में अच्छी खासी उठापटक देखने को मिल सकती है क्योंकि किसी को समझ नहीं आ रहा कि आखिर टिकट वितरण में किसकी चलेगी।
वार्ड बंदी को लेकर सबसे ज्यादा एक्टिव रहे हैं कांग्रेसी
जालंधर निगम की वार्डबंदी का ड्राफ्ट नोटिफाई हो चुका है और सभी वार्डों के नक्शे भी डिस्प्ले किए जा चुके हैं। पिछले समय दौरान देखने में आया है कि वार्ड बंदी के मामले में सबसे ज्यादा एक्टिव कांग्रेसी टिकटों के दावेदार ही रहे हैं जबकि इस मामले में आम आदमी पार्टी के साथ-साथ अकाली और भाजपा की टिकटों के दावेदार काफी पीछे चल रहे हैं।
आज कांग्रेसी नेता तो निगम में लगातार आ रहे हैं पर खास बात यह है कि आम आदमी पार्टी की टिकटों के ज्यादातर दावेदार नगर निगम में बहुत ही कम दिखाई देते हैं। माना जा रहा है कि ज्यादातर कांग्रेसियों ने वार्ड बंदी के हिसाब से अपने-अपने