इंटेलीजेंस विभाग के सिपाही सूरज पाल सिंह ने 17 साल पहले नौकरी से इस्तीफा दिया और खुद को नई पहचान दी। ये पहचान थी साकार विश्व हरि की। अंदाज संत महात्मा और प्रवचन देने वालों से एकदम अलग। सूट-बूट और काला चश्मा, मंच पर चांदी का चमकता सिंहासन और बगल में दूसरी कुर्सी पर पत्नी। पूजा सामग्री और न प्रसाद फल-फूल।
उत्तर प्रदेश के जिलों से निकलते हुए आस्था का साम्राज्य देश के कई राज्यों में गांव-गांव तक पहुंच गया। पुलिस प्रशासन, नेता और मीडिया से दूरी बनाकर भोले बाबा गरीब, वंचित समाज का परमात्मा बन गया। पहले उसके अनुयायियों में वंचित समाज के लोग मुख्य तौर पर जुड़े थे, लेकिन जब उसके साथ सभी जाति-वर्ग के लोग जुड़े तो उसने अपना नाम बदल लिया।