बॉलीवुड में कॉमेडी और नेगेटिव रोल में अपना दमखम दिखा चुके रितेश देशमुख ने ओटीटी प्लेटफॉर्म को लेकर बात की। उन्होंने कहा ”मुझे लगता है कि वक्त ने हीरो की परिभाषा बदल दी है। अब ऐसा नहीं है कि हीरो हमेशा सकारात्मक ही रहेगा। उसमें ग्रे शेड्स भी होंगे, फिर भी वो हीरो ही कहलाएगा। हीरो को अब इंसान ज्यादा बना दिया है।”
उन्होंने आगे कहा, ”मैं यहां थिएटर और सिनेमा की बात कर रहा हूं। ओटीटी प्लेटफार्म पर तो इसकी परिभाषा पूरी तरह बदल गई है, शायद 20 वर्ष पहले ‘पिल’ जैसा शो या फिल्म बनाने से निर्माता यह सोचकर घबराते कि पता नहीं चलेगी या नहीं। फार्मा कंपनी की कहानी में किसकी दिलचस्पी होगी, लेकिन ओटीटी प्लेटफार्म लोगों को नई चीजें करने के लिए हिम्मत देते हैं।”
लोगों तक क्या संदेश पहुंचाना चाहेंगे?
दवाएं जीवन बचाती हैं, पर गलत दवाएं नुकसान कर सकती हैं। किस तरह से हम बिना देखे-सोचे दवाएं खा लेते हैं, यह शो इस पर सवाल उठाएगा। मैं ये नहीं कह रहा हूं कि आपको अपने डाक्टर पर शक करना चाहिए। कई सारी फार्मा कंपनियां हैं, जो अच्छी दवाइयां बनाती हैं, वहीं कुछ कंपनियां दवाइयों को जल्दी लांच करने के लिए सही प्रक्रिया से नहीं गुजरती हैं। उन्हें खाने के बाद जो लोगों को भुगतना पड़ता है, वो बहुत बड़ी कीमत है।
आप काम में नैतिकता का कितना ध्यान रखते हैं?
रितेश देशमुख बोले, ”जहां तक सिनेमा में नैतिकता की बात है, तो आपको हर तरीके के पात्र निभाने के लिए तैयार रहना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप ऐसा पात्र न निभाएं, जो नैतिक तौर पर गलत हो। अगर आप उसे निभा रहे हैं, तो उसे पूरी सच्चाई के साथ निभाना होता है। अब जैसे ‘एक विलेन’ फिल्म की बात ही कर लेते हैं। उसमें मेरा अनैतिक पात्र था। वह सीरियल किलर था, लेकिन उसे उतनी ही सच्चाई से निभाना एक कलाकार की जिम्मेदारी है। फिल्मों को बनाने के दौरान नैतिकता का ध्यान रखना बहुत जरूरी है, लेकिन हर फिल्म नैतिक तौर पर सही नहीं हो सकती है।”
अपनी विचारधारा से हटकर कुछ फिल्में करना कितना कठिन होता है?
विचारधारा को लेकर कुछ चीजें होती हैं कि ये मैं नहीं करूंगा। हालांकि, अब तक मेरे करियर में वह दुविधा नहीं आई है, जिसे अपनी विचारधारा के आधार पर मना करना पड़ा हो। मैंने जिनके साथ काम किया है, उनकी और मेरी विचारधारा एक-दूसरे से मेल खाती रही है।
आपने इंस्टाग्राम पर पोस्ट डाली थी, ‘मां की साड़ी, बच्चों के कपड़े…’ वो रील है या रियल है?
वो एकदम रियल था। कोविड के दौरान हमने सोचा था। तब दीवाली थी, तो नए कपड़े बनवाने थे। मैंने मम्मी से उनकी पुरानी साड़ी ली और उससे अपने और बच्चों के लिए कपड़े सिलवाए थे।
आज के दौर में किसी सफल कलाकार का ऐसा सोचना बहुत अलग है…
जीवन में आपको एक प्वाइंट पर समझ आता है कि आपको किन चीजों को बहुत तवज्जो देने की जरूरत है और किसे नहीं। अब मैं जूते सेल में खरीदता हूं। मैं विदेशी डिजाइनर कपड़े न खरीदता हूं, न पहनता हूं। मुझे लगता है कि वह पैसे कहीं और खर्च कर सकूं। मैं अपने पैसे कपड़ों से ज्यादा खाने-पीने और मनोरंजन पर खर्च करता हूं। मैं अब भारतीय डिजाइनर्स के कपड़े ही पहनता हूं।
छत्रपति शिवाजी महाराज पर फिल्म बनाने के प्रोजेक्ट में देरी हो रही है…
हां, कुछ महीने में शुरू होगा। लुक ट्रायल चल रहा है। हमें देखना है कि कौन सा लुक आएगा। छत्रपति राजा शिवाजी पर जो फिल्म बना रहे हैं, उसकी चुनौती यही है कि हमें इसे उसी सम्मान के साथ बनाना है, जिस सम्मान से लोग उन्हें पूजते हैं। उम्मीद है कि हमारा प्रयास लोगों को पसंद आए।
इंडस्ट्री की कौन सी बातें हैं कि जो कोई दवा देकर हमेशा के लिए ठीक करना चाहेंगे?
हम वो फिल्में बनाएं ही नहीं, जो मनोरंजन न करें। ऐसी फिल्में बनाएं, जिसकी वजह से निर्माता का नुकसान न हो। उसके लिए कोई दवा होती तो मजा आ जाता।