लखनऊ के प्रसिद्घ मंदिरों में सुबह की आरती के लिए एक दिन पहले ही तैयारियां कर ली गई थीं।
शहर के महाकाल मंदिर में बाबा भोलेनाथ का भव्य श्रृंगार किया गया और मनकामेश्वर मंदिर में सुबह चार बजे आरती की गई।
मंदिरों में हर हर महादेव के गूंज होती रही। श्रद्घालु बाबा भोलेनाथ का जलाभिषेक करने के लिए कतारों में लगे हुए हैं।
सावन मास के पहले सोमवार के मौके पर जिले के पौराणिक तीर्थ स्थल श्री लोधेश्वर महादेवा तीर्थ में शिव भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा है। रविवार की शाम से भगवान लोधेश्वर को जलाभिषेक और अन्य द्रव्य अर्पित करने के लिए करीब दो किलोमीटर लंबी कतार लग गई। रात 12:00 बजे ही महादेवा के कपाट खोल दिए गए जिसके बाद शिव भक्त लगातार जलाभिषेक कर रहे हैं।
सावन मास के पहले दिन क्षेत्र स्थित शिवालय हर-हर महादेव के जयकारों से गूंज उठे। भोर से ही भगवान भोलेनाथ को जलाभिषेक के लिए भक्तो की लंबी कतार लगी दिखाई पड़ी। सावन मास में भगवान भोलेनाथ की आराधना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पूरे माह शिव भक्त प्रसिद्ध शिवालयों में पहुंच कर भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं।
कांवरियों का जत्था दिन-रात पैदल यात्रा कर भगवान भोलेनाथ के जलाभिषेक के लिए चलता रहता है। सावन के पहले दिन क्षेत्र की ग्राम पंचायत ताला स्थित मुकुट नाथ धाम, जगेश्वरन धाम, देवीपाटन स्थित शिव धाम, दुखहरण नाथ धाम, महादेवन सहित विभिन्न शिवालयों में भक्तों ने जलाभिषेक कर भगवान भोले नाथ का पूजन अर्चन किया। जलाभिषेक के लिए भोर से ही मंदिरों पर भक्तों की कतार मंदिरों में लगी दिखाई पड़ी। वही शिव भक्तों ने घरों और शिवालयों पर रुद्राभिषेक कर भगवान शिव का पूजन अर्चन किया।
सावन और सोमवार के पुण्य योग से अभिभूत रामनगरी तड़के ही भोले के भक्तों से बम-बम हो उठी। दिन चढ़ने के साथ भोले के भक्तों की आस्था चटख होती गई। शुरुआत सरयू तट से हुई। पौ फटने से पहले शिवभक्तों का जत्था पुण्यसलिला की ओर उन्मुख हुआ। संत तुलसीदास घाट, लक्ष्मण घाट सहित कई अन्य घाटों पर सरयू स्नान का सिलसिला पूर्वाह्न तक चला और सरयू स्नान के बाद श्रद्धालुओं का जत्था पौराणिक महत्व की पीठ नागेश्वरनाथ की ओर बढ़ा। श्रद्धालुओं का गहन प्रवाह प्रशासनिक अधिकारियों एवं पुलिस के जवानों की घंटों परीक्षा लेता रहा। भोर के कुछ घंटों तक बाबा के दरबार में रह-रह कर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ रहा था। भीड़ के दबाव का सामना करते भक्त किसी तरह बाबा के सम्मुख पहुंच कर दूध अथवा सरयू जल से अभिषेक कर रहे थे। अगले पल उन्हें निकास द्वार की ओर बढ़ने को विवश होना पड़ रहा था।