कोहिनूर के बारे में तो हर कोई जानता है लेकिन पंजाब के सबसे प्रतिष्ठित प्रतीकों में से एक स्वर्ण सिंहासन के बारे में बहुत कम लोगों को पता है। स्वर्ण सिंहासन को 1849 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने हड़प लिया था और कोहिनूर के साथ उसे भी लंदन भेज दिया गया था। अब AAP सांसद राघव चड्ढा ने पंजाब के धरोहर को ब्रिटेन से वापस लाने की मांग उठाई है।
राजेश सोनकर, जालंधर। महाराजा रणजीत सिंह के सिख राज्य पंजाब के सबसे प्रतिष्ठित प्रतीकों में से एक उनका स्वर्ण सिंहासन लंदन के विक्टोरिया एंड एल्बर्ट (वी एंड ए) संग्रहालय में है। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने पिछले दिनों सदन को संबोधित करते हुए शेरे-पंजाब का सिंहासन वापस भारत लाने की मांग रखी।
उनके अलावा भाजपा के पूर्व राज्यसभा सांसद श्वेत मलिक का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इस सिंहासन को स्वदेश वापस लाने के लिए प्रयासरत हैं। ऐसे में यह जानना रोमांचकारी है कि कैसे यह स्वर्ण सिंहासन भारत से लंदन के संग्रहालय पहुंचा।
कोहिनूर से कम नहीं है स्वर्ण सिंहासन
चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में इतिहास के सेवानिवृत्त प्रोफेसर गुरदर्शन सिंह ढिल्लों ने बताया कि महाराजा रणजीत सिंह के जगत प्रसिद्ध कोहिनूर हीरे के संबंध में तो सभी लोग जानते हैं परंतु उनके स्वर्ण सिंहासन की चर्चा कम ही होती है। स्वर्ण सिंहासन अपनी संरचना व मूल्य में कोहिनूर से किसी भी प्रकार कम नहीं है।
1849 में आंग्ल-सिख युद्ध के बाद अंग्रेजों ने पंजाब का अधिग्रहण कर लिया था। उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रमुख लॉर्ड जेम्स डलहौजी ने अपने सचिव डॉ. जॉन लागिन से महाराजा के तोशाखाना की वस्तुओं की विस्तृत सूची तैयार करवाई थी। लागिन तोशाखाना में संजोई दौलत देखकर दंग रह गया था। तोशाखाने में रखी बहुमूल्य वस्तुओं की सूची बनाने में नौ दिन लगे थे।