सिनेमा जगत के दिग्गज निर्माता-निर्देशक राम गोपाल वर्मा (Ram Gopal Varma) अपने बयानों को लेकर भी चर्चा बटोरते रहते हैं। हाल ही में, सत्या निर्देशक ने माइथोलॉजिकल फिल्मों पर रिएक्शन दिया है। उन्होंने माइथोलॉजी फिल्मों को बनाना खतरनाक बताया है।
राम गोपाल वर्मा ने एक हालिया इंटरव्यू में बताया कि माइथोलॉजिकल कहानियों पर फिल्में बनाना खतरनाक है। पहले ऐसी कहानियां चलती थीं, लेकिन अब बॉक्स ऑफिस पर इनका चलना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि माइथोलॉजिकल फिल्में कानूनी पचड़े में भी फंस जाती हैं। उन्होंने नितेश तिवारी की रामायण (Ramayana) के बारे में पूछने पर ये बातें कही हैं।
क्यों नहीं चल रहीं पौराणिक फिल्में
राम गोपाल वर्मा ने बताया कि देश में पौराणिक फिल्में क्यों नहीं चल रही हैं। गलाटा प्लस के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, “पौराणिक कहानियों पर फिल्में बनाना बहुत खतरनाक है। इसके दो कारण हैं- जो कहानियां लोगों को पता हैं और आप उन्हें अलग बनाने की कोशिश करते हैं, इसका उल्टा असर हो सकता है। आप हमारे देश में ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि लोग उनकी पूजा करते हैं।”
पहले क्यों सक्सेसफुल होती थीं पौराणिक फिल्में?
राम गोपाल वर्मा ने आगे बताया कि क्यों पहले पौराणिक फिल्में अच्छी कमाई कर लिया करती थीं, लेकिन अब वैसा नहीं है। डायरेक्टर ने कहा, “मुझे लगता है कि यह अतीत में काम कर सकता था जब बाबूभाई मिस्त्री ने सम्पूर्ण रामायण और एनटी रामा राव की सभी पौराणिक फिल्में बनाई थीं लेकिन आज वे श्रद्धा की स्थिति में पहुंच गये हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि उस वक्त शायद जनता दो भागों में नहीं बटी थी और ना ही सोशल मीडिया पर लोगों की व्याख्या को चुनौती मिलती थी।”
राम गोपाल वर्मा ने दिया आदिपुरुष का उदाहरण
पिछले साल रिलीज हुई रामायण से प्रेरित फिल्म आदिपुरुष को खूब आलोचना सहनी पड़ी थी। अब राम गोपाल वर्मा ने इस फिल्म का उदाहरण देते हुए कहा, “अगर आप आदिपुरुष को देखें, तो यह सैफ अली खान के लुक और हनुमान के लुक के बारे में ज्यादा था। इस तरह की लगातार आलोचना के कारण उस शेल्फ से टॉपिक लेना बहुत खतरनाक है। फिर भी ये फिल्म निर्माता अपना प्रयास कर रहे हैं और मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं।”
फिल्ममेकर्स को राम गोपाल की सलाह
राम गोपाल वर्मा ने फिल्म निर्माताओं को सलाह दी कि पौराणिक फिल्में बनाने को लेकर एक सलाह दी। उन्होंने कहा, “मेरा कहना है कि एक नई कहानी क्यों नहीं बनाई जाये और इसे रामायण क्यों न कहा जाये? अगर आप आदिपुरुष को प्रभास की फिल्म के रूप में बेचते हैं, तो लोग इसे अलग तरह से देखेंगे, लेकिन अगर मुझे बताया जाये कि यह रामायण है, तो मैं इसे अलग तरह से देखूंगा। एक सेंसिटिव टॉपिक को पूरी तरह से नई चीज के रूप में दिखाने और नकारात्मकता के हमले से बचने के बजाय उसे क्यों छुआ जाये?”