वो खड़ी रही, अड़ी रही और लड़ती रही…ऐसा करने वाली के नाम से देश ही दुनिया भी परिचित हो चुकी है. नाम है उसका विनेश फोगाट है. पेरिस में हो रहे खेलों के महाकुंभ में हरियाणा की इस छोरी ने भारत का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया है. ये वही विनेश फोगाट हैं जिनके लिए कुछ महीने पहले तक कई तरह की बातें कही गई थीं।
जब वो न्याय की मांग कर रही थीं तो उन्हें विपक्ष का मोहरा कहा गया. जब वह जंतर मंतर पर बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आवाज उठा रही थीं तो पुलिस की उनके साथ हाथापाई हुई. पुलिस की नजर में वो देश की ‘दुश्मन’ हो गई थीं।
उन्हें संसद तक नहीं जाने दिया गया. विनेश ने भी सोच लिया ठीक है, जो करना है कर लो. ये तुम्हारा एक्शन है. मेरा एक्शन तो ओलंपिक में दिखेगा. वहीं से सबको शांत करूंगी।
विनेश फोगाट इस बार ओलंपिक में ठानकर गई थीं कि विरोधी टीम ही नहीं घर में बैठे विरोधियों को भी ढेर करना है. विनेश ने जो ठाना उसे किया. उन्होंने ओलंपिक में महिलाओं के 50 किगो वर्ग के फाइनल में जगह बनाई।
उन्होंने ऐसा करके इतिहास रच दिया. इसके साथ ये तो तय हो गया है कि विनेश भारत खाली हाथ नहीं लौटेंगी. उनके साथ मेडल होगा. विनेश ने पेरिस में तो परचम लहरा दिया है. लेकिन वहां जाने से पहले उन्होंने दिल्ली में भी दंगल जीता था।
विनेश फोगाट ओलंपिक के फाइनल में पहुंचने वाली भारत की पहली महिला रेसलर
दिल्ली का दंगल किया था अपने नाम
दिल्ली के दंगल में उनके विरोधी थे रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह. बृजभूषण यूपी के कैसरगंज से बीजेपी के सांसद रहे हैं. विनेश, साक्षी समेत कई महिला पहलवानों ने बृजभूषण के खिलाफ छेड़खानी, यौन शोषण और मनमानी का आरोप लगाया था. उन्होंने पिछले साल जंतर मंतर पर प्रदर्शन भी किया. वे नई संसद तक जाना चाहते थे।
लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया. मामला कोर्ट तक पहुंचा. ये सब तब हो रहा था जब देश में लोकसभा चुनाव होने वाले थे। इन आरोपों के बाद बीजेपी बैकफुट पर आ गई थी।
विनेश, साक्षी और बजरंग पुनिया समेत कई पहलवानों के सामने बीजेपी को झुकना पड़ा और बृजभूषण शरण सिंह का टिकट काटना पड़ा. पार्टी ने उनके बेटे को चुनावी मैदान में उतारा. उनकी जीत भी हुई।
लेकिन बृजभूषण का टिकट कटना और संसद में नहीं जाने देना विनेश और साक्षी की बड़ी जीत रही. उन्होंने उस बृजभूषण को सांसद बनने से रोका जिसकी कैसरगंज में तूती बोलती है. जिन बृजभूषण के सामने विरोधी नहीं टिकते उनके सियासी सफर पर विनेश और साक्षी ने ब्रेक लगा दिया।
विनेश फोगाट की जीत पर पहलवान बजरंग पुनिया ने कहा, पदक बृजभूषण शरण सिंह के चेहरे पर तमाचा है. बजरंग पुनिया ने कहा, मुझे परेशानी इस बात से है कि जब पिछले साल देश की ये बेटियां जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रही थीं, तो भारत सरकार ने एक शब्द भी नहीं बोला. अब जब उन्होंने अच्छा किया है, तो आप उन पर देश की बेटियां होने का दावा कैसे करेंगे।
दर्द और आंसुओं से भरा रहा है सफर
विनेश का ओलंपिक तक का सफर दर्द और आंसुओं से भरा रहा है. विनेश को रियो ओलंपिक में पदक का प्रबल दावेदार माना जा रहा था. उन्होंने शुरुआत भी शानदार की थी. पहले मैच में उन्होंने तकनीकी श्रेष्ठता के आधार पर 11-0 से जीत हासिल की थी. लेकिन क्वार्टर फाइनल में चीन की सुन यानान के खिलाफ मैच में उन्हें चोट लगी। रोते हुए विनेश फोगाट को स्ट्रेचर पर मैट से बाहर ले जाया गया।
विनेश को न केवल रियो 2016 से हटने के लिए मजबूर होना पड़ा, बल्कि उन्हें सर्जरी भी करानी पड़ी. वह कई महीने तक खेल से दूर रहीं. 2018 में उनकी वापसी हुई. टोक्यो ओलंपिक में उन्हें कुछ कर दिखाने को मौका मिला. लेकिन वह क्वार्टर फाइनल से आगे नहीं जा पाईं।
हार के बाद भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) ने टोक्यो में विनेश के आचरण के लिए उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की. डब्ल्यूएफआई ने उनका निलंबन रद्द कर दिया. 2021 में विश्व चैंपियनशिप के लिए ट्रायल से विनेश ने अपना नाम वापस ले लिया था।
कुछ ही दिनों में उनकी कोहनी की सर्जरी हुई। विनेश ने सर्जरी के बाद अपने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया, कोहनी की सर्जरी हो गई. चाहे मैं कितनी भी बार गिरूं, मैं फिर भी उठूंगा।
उन्होंने 2022 में उस झटके से वापसी की और बेलग्रेड में विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में कांस्य पदक और बर्मिंघम में राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता. लेकिन जून 2023 में उन्हें एक और कोहनी की सर्जरी करानी पड़ी. विनेश फोगाट एशियाई खेलों के लिए तैयार हो रही थीं, तभी एक और मुसीबत आ गई. अगस्त में ट्रेनिंग सेशन के दौरान उनके बाएं पैर के घुटने में चोट लग गई।
डॉक्टर ने कहा कि सर्जरी से ही चोट ठीक हो सकती है. तब विनेश ने कहा कि भारत के लिए एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक बरकरार रखना मेरा सपना था जो मैंने 2018 में जकार्ता में जीता था. लेकिन दुर्भाग्य से इस चोट के कारण हिस्सा नहीं ले पाऊंगी। तो विनेश के सफर में कई अड़चनें आईं, लेकिन ये धाकड़ लड़की डटी रही. उसने हार नहीं मानने की ठान रखी थी. उनके इसी जज्बे के कारण भारत उनसे गोल्ड की आस लगाए बैठा है।