प्रधानमंत्री ने अपने MannKiBaat में ई-वेस्ट और सर्कुलर इकोनॉमी का जिक्र किया। पीएम ने कहा, “मेरे प्यारे देशवासियो, मैंने NaMoApp पर तेलंगाना के इंजीनियर विजय जी की एक पोस्ट देखी। इसमें विजय जी ने EWaste के बारे में लिखा है। विजय जी से निवेदन है कि मैं ‘मन की बात’ में इस पर चर्चा करता हूं। इससे पहले भी इस कार्यक्रम में हमने ‘वेस्ट टू वेल्थ’ यानी ‘कचरे से कंचन’ की बात की है, लेकिन आइए, आज इसी से जुड़े ई-वेस्ट की चर्चा करते हैं। दोस्तों आज मोबाइल फोन, लैपटॉप, टैबलेट जैसे डिवाइस हर घर में आम हो गए हैं। उनकी संख्या देश भर में अरबों में होगा। आज के लेटेस्ट डिवाइस भी भविष्य का ई-वेस्ट हैं। जब भी कोई नया डिवाइस खरीदता है या किसी के पुराने डिवाइस को बदल देता है, तो यह ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है कि इसे सही तरीके से डिस्पोज किया गया है या नहीं।
अगर ई-वेस्ट का सही तरीके से निस्तारण नहीं किया गया तो यह हमारे पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन, अगर सावधानी से किया जाए तो यह रीसायकल और रीयूज की सर्कुलर इकोनॉमी में एक बड़ी ताकत बन सकता है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया था कि हर साल 50 मिलियन टन ई-वेस्ट फेंका जा रहा है। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि कितना?
मानव जाति के इतिहास में अब तक जितने भी व्यावसायिक विमान बनाए गए हैं, उन सभी का वजन जोड़ भी दिया जाए, तो भी यह ई-कचरे की मात्रा के बराबर नहीं होगा। ऐसा लगता है जैसे हर सेकंड 800 लैपटॉप फेंके जा रहे हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस ई-वेस्ट से अलग-अलग प्रोसेस से करीब 17 तरह की कीमती धातुएं निकाली जा सकती हैं। इसमें सोना, चांदी, तांबा और निकल शामिल है, इसलिए ई-कचरे का इस्तेमाल ‘कचरे को कंचन’ बनाने से कम नहीं है।
आज इस दिशा में इनोवेटिव काम करने वाले स्टार्टअप्स की कमी नहीं है। इस समय करीब 500 ई-वेस्ट रिसाइकिलर्स इस सेक्टर से जुड़े हैं और कई नए उद्यमी भी इससे जुड़ रहे हैं। इस क्षेत्र ने हजारों लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार भी दिया है। ऐसी ही एक कोशिश में लगी है बेंगलुरु की ई-परिसरा। इसने मुद्रित सर्किट बोर्डों से कीमती धातुओं को निकालने के लिए एक स्वदेशी तकनीक विकसित की है।
इसी तरह मुंबई में काम कर रहे ईको रिको ने मोबाइल एप के जरिए ई-वेस्ट कलेक्ट करने का सिस्टम विकसित किया है। रुड़की, उत्तराखंड के एटेरो रिसाइक्लिंग ने दुनिया भर में इस क्षेत्र में कई पेटेंट प्राप्त किए हैं। इसने अपनी खुद की ई-वेस्ट रिसाइकलिंग टेक्नोलॉजी तैयार कर बहुत सारे पुरस्कार भी अर्जित किए हैं। भोपाल में एक मोबाइल ऐप और वेबसाइट ‘कबाड़ीवाला’ के माध्यम से टनों ई-कचरा एकत्र किया जा रहा है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। ये सभी भारत को ग्लोबल रिसाइक्लिंग हब बनाने में मदद कर रहे हैं; लेकिन, इस तरह की पहल की सफलता के लिए एक अनिवार्य शर्त भी है – यानी लोगों को ई-वेस्ट के निपटान की सुरक्षित उपयोगी विधि के बारे में जागरूक करना होगा। ई-कचरा के क्षेत्र में काम करने वालों का कहना है कि मौजूदा समय में हर साल 15-17 फीसदी ई-कचरा ही रिसाइकल हो रहा है।