
एकता के प्रयासों की खुली पोल
शनिवार की घटना ने कांग्रेस में एकता के प्रयासों की पोल खोलकर रख दी जब कांग्रेस ने सुल्तानपुर लोधी में परिवर्तन रैली रखी थी। कांग्रेस की रैली के समानांतर सुल्तानपुर लोधी के आजाद विधायक व राणा गुरजीत सिंह के बेटे राणा इंदर प्रताप ने भी रैली रख ली। रैली के बाद जब वड़िंग लुधियाना में आशु से मिलने उनके घर पहुंचे तो आशु घर पर नहीं थे और राजा को इंतजार करने के बाद बैरंग वापस आना पड़ा।
पहले भी सामने आए थे मतभेद
कांग्रेस के विधायकों ने बाजवा के इस बयान से खुद को अलग कर लिया था परंतु बाद में दो बार वॉकआउट करके पार्टी ने एकता का संदेश देने की कोशिश की पर कोई भी विधायक ठेकेदार वाले आरोप पर बाजवा के साथ खड़ा नजर नहीं आया।
2022 के परिणाम से सबक नहीं ले रहे कांग्रेस नेता
चन्नी व सिद्धू भी अपनी सीट नहीं बचा पाए थे। चन्नी तो दो सीटों पर चुनाव लड़े थे पर उन्हें दोनों ही सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था।
भूपेश बघेल को मिली है पंजाब की जिम्मेदारी
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहना है कि बात कार्यकर्ताओं को जोड़ने की है, कार्यकर्ता तो जुड़ जाएगा परंतु जोड़ना तो हमें अपने नेताओं को है। नेताओं की खींचतान के कारण ही अमृतसर व फगवाड़ा में कांग्रेस अपना मेयर नहीं बना सकी।
पंजाब कांग्रेस की इसी खींचतान को देखते हुए पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेता व छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी दी थी। बघेल भले ही दो बार मैराथन बैठकें कर चुके हों परंतु पार्टी नेताओं के बीच की दूरियां कम नहीं हो रहीं। अब देखना होगा कि भूपेश बघेल किस प्रकार की रणनीति अपनाकर पार्टी में अनुशासन कायम रख पाएंगे।