
बैसाखी का पर्व केवल फसलों की कटाई शुरू करने का दिन नहीं बल्कि सिख धर्म के काफी ऐतिहासिक महत्व का भी दिन है।
यह वो दिव्य क्षण है जब श्री आनंदपुर साहिब की पुण्य धरा पर दसवें पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना कर धर्म के इतिहास में एक अमिट अध्याय लिखा। यह केवल एक आयोजन नहीं था बल्कि आत्मिक क्रांति की चिंगारी थी जिसने भय, मोह और अन्याय के विरुद्ध स्थायी प्रकाश की मशाल जलाई।
बैसाखी के दिन गुरु जी ने की थी पांच शीशों की मांग
सन् 1699 में बैसाखी वाले दिन ही गुरु जी ने विशाल पंडाल में संगत के बीच खड़े होकर पांच शीशों की मांग की। मंच पर सन्नाटा पसर गया पर बाद में एक-एक कर पांच सिखों ने अपना शीश अर्पित करने को आगे कदम बढ़ाया। वही पांच बने पंज प्यारे, खालसा पंथ के पहले दीये, जिन्होंने संसार को दिखाया कि गुरु का मार्ग केवल तलवार या तलवार की धार पर नहीं, बल्कि आत्म-बलिदान, पवित्रता और परम सत्य की नींव पर चलता है।
‘पांच प्यारे’ सिखों के नाम में ही छिपी है सच्ची साधना
इन ‘पांच प्यारे’ सिखों के नाम में ही जीवन की सच्ची साधना छिपी है। खालसा सृजन का यह पावन दिवस हमें सिखाता है कि अगर हम भी पंज प्यारों के पदचिन्हों पर चलें तो हमारे भीतर भी खालसा का तेज और गुरुओं की कृपा उतर सकती है।
1. भाई दया सिंह: जिनके नाम में ही ‘दयाभाव’ बसता है, वे सीख देते हैं कि किसी भी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत करुणा से होती है। जब तक हमारे भीतर दूसरों के दुख को अनुभव करने का भाव नहीं जगेगा, तब तक साधना अधूरी है। दया वह बीज है, जिससे हर धर्म की जड़ें निकलती हैं।
2. भाई धर्म सिंह: दया से सींचे हृदय में धर्म अंकुरित होता है। धर्म केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि वह जीवंत व्यवहार है जो सत्य, निष्ठा और सेवा से जुड़ा है। भाई धर्म सिंह हमें सिखाते हैं कि धर्म की राह पर चलने से ही जीवन में उद्देश्य आता है।
3. भाई हिम्मत सिंह: जब मन दया और धर्म से परिपूर्ण हो जाता है तो वह स्वाभाविक रूप से हिम्मत के मार्ग पर अग्रसर होता है। भाई हिम्मत सिंह उस साहस का प्रतीक हैं जो अन्याय, अत्याचार और भय के विरुद्ध खड़ा होता है, भले ही सामने दुनिया खड़ी हो।
4. भाई मोहकम सिंह : दया, धर्म और हिम्मत जब स्थायी हो जाएं तो मोह से मुक्ति अपने आप मिलती है। भाई मोहकम सिंह दिखाते हैं कि जब साधक संसार के आकर्षण से ऊपर उठता है तब वह भीतर के सच्चे आनंद से जुड़ता है।
5. भाई साहिब सिंह : अंततः जब मोह छूटता है, तब ही आत्मा ‘साहिब’ यानी परमात्मा से मिलती है। साहब सिंह उस अंतिम अवस्था के प्रतीक हैं, जहां जीवात्मा परमात्मा में लीन हो जाती है।