
न्यायपालिका में जजों से जातीय पक्षपात के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बेहद सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा- यह जज हालात और जातिगत पक्षपात का शिकार हुआ। सब पहले से फिक्स था। ऊंचे समुदाय के लोग बर्दाश्त ही नहीं कर पा रहे थे कि उपेक्षित समुदाय के व्यक्ति का लड़का (मोची) कम उम्र में जज बन गया और उनके बीच आ गया।’
जस्टिस सूर्यकांत ने पंजाब के एडिशनल सेशन जज (प्रेम कुमार) की बर्खास्तगी के मामले में सोमवार को ओपन कोर्ट में सुनवाई कर रहे थे। उन्होंने कहा- जज की बर्खास्तगी गलत थी, उनको बहाल किया जाए। साथ ही उनकी सेवा के पदोन्नति व अन्य सभी लाभ दिए जाएं।
जज प्रेम कुमार को दुष्कर्म के मामले में आरोपी की शिकायत पर ‘संदिग्ध निष्ठा’ का दोषी मानते हुए बर्खास्त कर दिया गया था।
जानिए क्या था पूरा मामला…
दरअसल, बरनाला के प्रेम कुमार 26 अप्रैल 2014 को एडिशनल जिला एवं सेशन जज बने और अमृतसर जिला कोर्ट में नियुक्त हुए। इस दौरान दुष्कर्म के आरोपी ने हाईकोर्ट में शिकायत दी कि प्रेम कुमार ने वकालत करते वक्त दुष्कर्म पीड़िता की ओर से समझौते के लिए संपर्क किया और पीड़िता को 1.50 लाख रुपए दिलवाए। हाईकोर्ट ने विजिलेंस जांच शुरू की।
इसके आधार पर जज की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में ‘ईमानदारी संदिग्ध’ दर्ज कर दी गई। फिर 2022 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की फुल बेंच ने 2015 की इस रिपोर्ट और शिकायत के आधार पर प्रेम कुमार को बर्खास्त कर दिया गया।
प्रेम कुमार ने अपनी बर्खास्तगी को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी। जनवरी 2025 में सुबूतों की कमी का हवाला देते हुए उनकी बर्खास्तगी रद्द कर दी गई। हाईकोर्ट ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
क्या है संदिग्ध निष्ठा, जिस पर सवाल उठे
किसी जज के संदर्भ में संदिग्ध निष्ठा एक बहुत गंभीर आरोप होता है, क्योंकि न्यायपालिका की मूल शक्ति ही जनता के भरोसे, निष्पक्षता और ईमानदारी पर टिकी होती है। अगर किसी जज की निष्ठा संदिग्ध मानी जाती है, तो इसका मतलब है कि उसके निर्णय, व्यवहार या व्यक्तिगत संपर्कों में कोई ऐसा संकेत पाया गया है जो न्यायिक निष्पक्षता पर सवाल उठाता है।
भारत में जजों की संदिग्ध निष्ठा से जुड़े मामले
- जस्टिस सी. एस. कर्णन (कलकत्ता हाईकोर्ट) : इन्होंने सुप्रीम कोर्ट के जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे और खुद को प्रताड़ित दलित बताया। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अवमानना का दोषी ठहराया और 6 महीने की सजा दी। यह भारत में पहली बार हुआ जब किसी सिटिंग जज को जेल भेजा गया। इस प्रकरण में उनकी मानसिक स्थिति और न्यायिक आचरण पर सवाल उठे।
- जस्टिस पी. डी. दिनाकरण (पूर्व चीफ जस्टिस, कर्नाटक हाईकोर्ट) : उन पर भ्रष्टाचार, जमीन हथियाने और न्यायिक निर्णयों में अनियमितता के गंभीर आरोप लगे। राष्ट्रपति ने उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की अनुमति दी, लेकिन उन्होंने स्वेच्छा से इस्तीफा दे दिया था।
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