
ऐसे बच्चे जिनको जन्म देने वाली मां ही उन्हें नहीं अपनातीं। जो जन्म लेते ही अपनी मां के आंचल से दूर हो जाते हैं, या जिनको जन्मदाता ही अकेला छोड़ कर चले जाते हैं। ऐसे करीब 94 बच्चों को गुड्डी मां का प्यार दे चुकी हैं। वह इन बच्चों को अपने घर पर तो नहीं रखतीं, लेकिन घरौंदा बाल आश्रम में रहकर इन बच्चों की देखभाल करती हैं।
गुड्डी का कहना है कि जो नवजात बच्चे आते हैं वह मां के बिना नहीं रह पाते उन बच्चों को विशेष तौर पर घंटों अपनी गोद में ही रखना होता है। जो बच्चे बड़े हो गए हैं वह बच्चे गुड्डी को ही अपनी मां समझते हैं और मम्मी कहकर ही बुलाते हैं।
कब से बच्चों की देखभाल कर रही?
गुड्डी ने बताया कि वह 2012 से आश्रम में बच्चों की देखभाल कर रही हैं। शुरुआत में चार बच्चे आश्रम में थे। फिलहाल 29 बच्चे हैं और करीब 65 बच्चे आश्रम से गोद दिए जा चुके हैं। जब बच्चों की संख्या कम थी तब तक वह पूरी देखभाल और खाना बनाना, कपड़े धोना एवं अन्य सभी काम स्वयं ही करती थीं।
लेकिन अब बच्चों की संख्या बढ़ गई है तो अन्य काम करने के लिए कर्मचारी लगे हुए हैं। वह केवल बच्चों की देखभाल करती हैं। जो छोटे बच्चे हैं और मां के बिना नहीं रह पाते या खुद खाना नहीं खा पाते उनको रखती हैं और खाना खिलाती हैं।
बच्चों की तबीयत खराब होने पर उनको चिकित्सक को दिखाती हैं और विशेष तौर पर देखभाल करती हैं। वह करीब 100 बच्चों को मां की गोद का सुख दे चुकी हैं। जो बच्चे गोद जा चुके हैं वह अभी भी उनको वीडियो काल एवं काल के माध्यम से बात करते हैं और मिलने आते हैं।
बच्चों को गोद देने का काम देखती हैं कनिका
बाल आश्रम में कनिका गौतम बच्चों को गोद देने का कार्य देखती हैं। इसके अलावा घरौंदा बाल आश्रम में अंजू 2018 ने बच्चों की देखभाल में मदद कर रही हैं। वह सुबह नाश्ता कराने के बाद बच्चों को तैयार कर स्कूल भेजती हैं।
पति का हुआ निधन तो अकेले संभाली जिम्मेदारी
गोविंदपुरम में रहने वाली सरोज मिश्रा के पति का 2021 में कोविड काल में निधन हुआ तो घर की आर्थिक स्थिति डगमगा गई। सरोज का कहना है कि वह तो गृहणी थीं कभी बाहर काम नहीं किया। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई और घर के खर्चा चलाना काफी मुश्किल हो गया।
उन्होंने स्वयं की जिम्मेदारी उठाने की ठानी और पति का प्रेस का काम सीखा। उस समय उनकी 21 वर्षीय बड़ी बेटी बीटेक सेकेंड ईयर में थी और बेटे ने भी बीटेक में ही दाखिला लिया था। तीन साल प्रेस का काम किया, लेकिन वह काम उतना नहीं चल सका।
इसके बाद उन्होंने टिफिन सर्विस का काम शुरू किया और बच्चों की पढ़ाई प्रभावित नहीं होने दी। फिलहाल उन्होंने एक कैफे की भी शुरुआत की है। बेटी बीटेक के बाद मुम्बई में नौकरी कर रही हैं और बेटे कैफे के संचालन में मदद कर रहे हैं।