
होमी भाभा की योजनाओं को किया साकार
परमाणु कार्यक्रम की कमान संभाली
डॉ. श्रीनिवासन का शुरुआती जीवन
गैस टरबाइन प्रौद्योगिकी में विशेषज्ञता
भौतिकी उनका पहला प्यार होने के बावजूद, उन्होंने एम. विश्वेश्वरैया द्वारा हाल ही में शुरू किए गए इंजीनियरिंग कालेज (वर्तमान में यूवीसीई) में प्रवेश लिया, जहां उन्होंने 1950 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने 1952 में अपनी मास्टर डिग्री पूरी की और 1954 में मैकगिल यूनिवर्सिटी, मॉन्ट्रियल, कनाडा से डाक्टर आफ फिलासफी की डिग्री प्राप्त की। उनकी विशेषज्ञता का क्षेत्र गैस टरबाइन प्रौद्योगिकी था।
परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष बने
डा. श्रीनिवासन 1955 में परमाणु ऊर्जा विभाग में शामिल हुए। अगस्त 1959 में उन्हें भारत के पहले परमाणु ऊर्जा स्टेशन के निर्माण के लिए प्रधान परियोजना इंजीनियर नियुक्त किया गया। डॉ. श्रीनिवासन ने राष्ट्रीय महत्व के कई प्रमुख पदों पर कार्य किया। 1987 में उन्हें परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष और परमाणु ऊर्जा विभाग का सचिव नियुक्त किया गया। उसी वर्ष, वे एनपीसीआईएल के संस्थापक-अध्यक्ष बने। उनके नेतृत्व में 18 परमाणु ऊर्जा इकाइयाँ विकसित की गईं।
पद्म पुरस्कार से सम्मानित
भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें पद्म श्री (1984), पद्म भूषण (1990) और पद्म विभूषण (2015) से सम्मानित किया गया। वह 1996 से 1998 तक भारत सरकार के योजना आयोग के सदस्य रहे, जहाँ उन्होंने ऊर्जा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विभागों का कार्यभार संभाला। वे 2002 से 2004 तक और फिर 2006 से 2008 तक भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य भी रहे।