
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने वर्ष 2004 की हरियाणा सिविल सेवा (कार्यकारी शाखा) भर्ती में चयनित एक उम्मीदवार की नियुक्ति से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए दो जजों की खंडपीठ ने विभाजित फैसला सुनाया है।
जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा ने याचिकाकर्ता सुरेंद्र लाठर की अपील को स्वीकार करते हुए उन्हें नियुक्ति देने का निर्देश दिया, जबकि जस्टिस मीनाक्षी आई मेहता ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने मतभेद के चलते यह मामला अब पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष एक बड़ी पीठ गठित करने के लिए भेज दिया है, ताकि अंतिम निर्णय लिया जा सके।
यह मामला सुरेंद्र लाठर द्वारा दायर की गई अपील से जुड़ा है, जो कि 2004 की हरियाणा सिविल सेवा परीक्षा में चयनित हुए थे। हरियाणा लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित इस परीक्षा में चयन प्रक्रिया को लेकर गंभीर अनियमितताओं के आरोप लगे थे।
मूल्यांकन प्रक्रिया में हुईं घोर अनियमितताएं
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हरियाणा राज्य सतर्कता ब्यूरो द्वारा जांच कर 9 नवंबर 2011 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। जांच में पाया गया कि मूल्यांकन प्रक्रिया में घोर अनियमितताए हुईं।
उत्तर पुस्तिकाओं की जांच में विभिन्न स्याहियों का प्रयोग किया गया, और अंकों में परिवर्तन करने के संकेत मिले। मूल्यांकनकर्ता द्वारा अंक देने तथा हस्ताक्षर करने के लिए अलग-अलग पेन के इस्तेमाल की बात सामने आई।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और उच्च न्यायालय के आदेशों के अनुपालन में वरिष्ठ अधिकारियों की एक समिति, जिसकी अध्यक्षता सतर्कता ब्यूरो के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक कर रहे थे, गठित की गई। इस समिति ने उम्मीदवारों को ‘दागी’ और ‘निर्दोष’ श्रेणियों में विभाजित किया।
38 उम्मीदवारों को ‘निर्दोष’ मानते हुए नियुक्ति दे दी गई। उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच ने 2016 में इस निर्णय को बरकरार रखा था, और यह स्वतंत्रता भी दी थी कि अन्य वंचित उम्मीदवार राज्य सरकार के समक्ष अपना दावा प्रस्तुत कर सकते हैं।
सुरेंद्र लाठर ने भी राज्य सरकार के समक्ष प्रतिनिधित्व दिया। समिति ने यह कहकर उनका दावा खारिज कर दिया कि उनकी उत्तर पुस्तिका की जांच करने वाले परीक्षक ने दो अलग-अलग पेन का उपयोग किया था। 27 फरवरी 2017 को इस आधार पर उनका प्रतिनिधित्व अस्वीकार कर दिया गया, जिसे उन्होंने चुनौती दी।
38 लोगों को किया गया था नियुक्त
अपीलकर्ता का तर्क था कि जिन 38 लोगों को नियुक्त किया गया, उनमें से पाच ऐसे उम्मीदवार भी शामिल हैं जिनकी उत्तर पुस्तिकाओं में भी दो अलग-अलग पेन का उपयोग किया गया था। ऐसे में उनके साथ भेदभाव क्यों किया गया? इसके अतिरिक्त, फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया कि दोनों स्याहियों का उपयोग करने वाला परीक्षक एक ही व्यक्ति था।
जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा ने सुरेंद्र लाठर के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य सरकार द्वारा की गई जांच प्रक्रिया स्पष्ट रूप से पक्षपातपूर्ण और मनमाने ढंग से की गई है।
उन्होंने कहा कि जिन परीक्षकों द्वारा दो स्याही का प्रयोग किया गया, उनके आधार पर चयनित पांच उम्मीदवारों को नियुक्ति देना और उसी प्रकार की उत्तर पुस्तिका वाले अपीलकर्ता को नियुक्ति से वंचित रखना, संविधान के समानता सिद्धांत का सीधा उल्लंघन है।
उन्होंने कहा कि एक बार जब समिति यह मान चुकी है कि एक ही परीक्षक द्वारा दो स्याहियों का प्रयोग कोई गड़बड़ी नहीं है, तो फिर सभी समान परिस्थितियों वाले उम्मीदवारों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए था।
वहीं दूसरी ओर, जस्टिस मीनाक्षी आई मेहता ने सुरेंद्र लाठर की अपील को खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने पूर्व में इस मुद्दे पर अदालत से कोई विशेष अनुमति नहीं ली थी कि वे भविष्य में अपील दायर कर सकेंगे। उन्होंने स्वयं ही राज्य सरकार के समक्ष अपना मामला प्रस्तुत करने का विकल्प चुना था।
जस्टिस मेहता ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने उनकी उत्तर पुस्तिका की जांच करते हुए सभी आवश्यक तथ्यों और रिपोर्टों को ध्यान में रखा और किसी प्रकार की दुर्भावना या भेदभाव का प्रमाण याचिकाकर्ता प्रस्तुत नहीं कर सके।
इस प्रकार, दोनों जजों के विपरीत निर्णयों को देखते हुए यह मामला अब मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा गया है, जो इस विषय पर बड़ी पीठ गठित कर अंतिम निर्णय करेंगे।