
उत्तराखंड का नैनीताल जिला जहां एक ओर अपनी खूबसूरती और घूमने की जगहों के लिए जाना जाता है, वहीं यह जगह आध्यात्मिक रूप से भी बहुत खास मानी जाती है। यहां स्थित नीम करौली बाबा के चार प्रसिद्ध धाम लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र हैं।
चार धामों की यात्रा क्यों है खास?
नीम करौली बाबा के ये चारों स्थल सिर्फ मंदिर नहीं हैं, बल्कि यहां आने वाले लोगों को मन की शांति, समस्याओं का हल और एक अलग ही आध्यात्मिक अनुभव मिलता है। इन धामों में बाबा की मौजूदगी को लोग आज भी महसूस करते हैं।
1. कैंची धाम – सबसे प्रसिद्ध स्थान
यह बाबा नीम करौली का मुख्य और सबसे प्रसिद्ध धाम है।
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यह भवाली से अल्मोड़ा की तरफ जाने वाले रास्ते पर स्थित है।
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बाबा ने खुद इस जगह की स्थापना की थी।
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हर साल 15 जून को यहां विशाल भंडारा (प्रसाद वितरण) होता है, जिसमें हजारों लोग शामिल होते हैं।
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मंदिर में हनुमान जी और बाबा की मूर्ति है।
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यहां की ऊर्जा से भक्तों को मन की शांति मिलती है।
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यह जगह सोमवारी महाराज की तपोस्थली भी रही है, जिनकी धूनी (जगह पर जली हुई पूजा की अग्नि) आज भी यहां मौजूद है।
2. हनुमानगढ़ी – ऊंची पहाड़ी पर बसे बाबा के चमत्कारों का धाम
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यह धाम नैनीताल शहर से सिर्फ 2 किलोमीटर की दूरी पर है।
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यहाँ बाबा नीम करौली ने 1950 में एक कुटिया बनवाई थी।
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1953 में बाबा ने एक बड़ी हनुमान जी की मूर्ति यहां स्थापित करवाई।
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इसके बाद यहाँ राम मंदिर और शिव मंदिर भी बनाए गए।
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यह स्थान सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी जाना जाता है। यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य बेहद सुंदर दिखता है।
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कई भक्तों ने यहां चमत्कारी अनुभव महसूस किए हैं।
3. भूमियाधार – शांति और भजन की जगह
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यह आश्रम नैनीताल से 12 किलोमीटर दूर, भवाली-ज्योलीकोट रोड पर है।
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बाबा यहां अक्सर आते थे और भजन-कीर्तन में समय बिताते थे।
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यहाँ का वातावरण बहुत शांत और प्राकृतिक है।
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आश्रम के निर्माण में स्थानीय लोगों ने अपनी जमीन और दुकानें दान में दी थीं।
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यह जगह आज एक सुंदर और शांत आध्यात्मिक स्थल बन चुकी है।
4. काकड़ीघाट – शिवलिंग और तप की भूमि
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यह धाम भवाली से अल्मोड़ा की ओर 30 किलोमीटर की दूरी पर है।
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यह जगह संत सोमवारी महाराज की तपोस्थली है।
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बाबा नीम करौली ने यहां एक शिवलिंग की स्थापना की थी।
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यहां सोमवारी महाराज की धूनी भी है, जो आज भी मौजूद है।
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बाबा यहां भजन-कीर्तन और भंडारे करवाते थे, जिससे लोगों को आध्यात्मिक आनंद मिलता था।