इस वजह से मरीजों को जांच के लिए एक जगह से दूसरी जगह भागदौड़ करनी पड़ती है। कुछ जांच ऐसी भी हैं जो एक से अधिक विभागों की लैब में जांच होती है लेकिन शुल्क में फर्क है। एम्स के डॉक्टर बताते हैं कि नेक्स्ट जनरेशन सिक्वेंसिंग (एनजीएस), ब्लड कैंसर के मरीजों की आस्मेटिक फ्रैजिलिटी सहित कई तरह की जांच मशीन तो उपलब्ध है लेकिन तकनीकी कारणों से जांच नहीं होती।
समिति को ऐसे सभी विषयों पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा गया था। एम्स में अब तक जो जांच नहीं होती उसे भी रिपोर्ट में शामिल करने के लिए कहा गया था। इस कमेटी ने निदेशक के निर्देश के करीब पौने दो वर्ष बाद भी रिपोर्ट तैयार कर अपनी सिफारिशें नहीं भेजी।
यह भी तब जब इस वर्ष फरवरी में एम्स निदेशक ने दोबारा आदेश जारी कर 31 मार्च तक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया था। इसके बाद अब एम्स निदेशक ने तीसरी बार एक आदेश जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि समिति द्वारा अब तक रिपोर्ट नहीं सौंपे जाने से नई जांचें शुरू करने में देरी हो रही है।
यह समिति के सदस्यों की प्रतिबद्धता व संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है। इस मामले को गंभीरता से लिया गया है और एम्स निदेशक ने समिति को 31 जुलाई तक रिपोर्ट सौंपने का दिया अंतिम अवसर दिया है। इस निर्धारित अवधि तक भी रिपोर्ट नहीं सौंपने पर कार्रवाई करने की सख्त चेतावनी दी है। साथ कहा है कि 31 जुलाई तक रिपोर्ट नहीं देने पर इस समिति को भंग कर दूसरी समिति गठित की जाएगी।