
चंडीगढ़:- शहर के बायो माइनिंग प्रोजेक्ट में खेल करने की भूमिका पहले ही तैयार कर ली गई थी। निगम के चीफ इंजीनियर की मेहरबानी से यह खेल खेला गया। बायो माइनिंग का काम दो चहेती कंपनियों को देने से पहले कई बार टेंडर की शर्तें बदली गई।
इन शर्तों को बदलने का फायदा कंपनियों ने उठाया और उन्होंने काम आगे सबलेट कर दिया। परिणाम यह हुआ कि करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद डंपिंग ग्राउंड से पूरा कचरा नहीं उठाया गया है।
टेंडर की शर्तों में किए गए बदलाव के कारण स्टील के जाम से जुड़ी कंपनी को बायो माइनिंग का काम दे दिया। टेंडर की शर्तें तैयार करने की जिम्मेदारी चीफ इंजीनियर पर होती है। इस टेंडर में चीफ ने आंखें मूंद कर कसम किया और पार्षदों तथा निगम के सीनियर अफसरों को भी अंधेरे में रखा।
अब यह मुद्दा निगम के आगामी सदन की बैठक में उठेगा। सबसे बड़ा सवाल यह है कि कैसे एक कंपनी खुद काम करने की बजाय दूसरों को ठेका दे सकती है। यह सरासर टेंडर की शर्तों का उल्लंघन है।
बल्क डेंसिटी में हुआ खेल
निगम के इंजीनियरिंग विभाग के अफसरों ने पीएसयू को काम अलॉट करते समय बल्क डेंसिटी .6 दिखा दी जबकि इससे पहले कि कंपनी को बल्क डेंसिटी 1 से अधिक पर काम मिला था। इसका सीधा सीधा फायदा पीएसयू को मिला। कंपनी को पहले की तुलना में लगभग दोगुना पेमेंट की जा रही है।
निगम पार्षदों ओर अफसरों को यह जानकारी नहीं दी गई। यदि निगम डंपिंग ग्राउंड में पहले काम कर रही कंपनी आकांक्षा एंटरप्राइजेज की तरह काम अलॉट करता तो उसे लगभग 5 करोड़ का फायदा होता।
जिम्मेदारी तय हो
निगम में बायो माइनिंग के नाम पर हुए इस घोटाली की जिम्मेदारी तय करने की मांग की जा रही है। पूर्व डिप्टी मेयर सतीश कैथ के अनुसार चीफ इंजीनियर अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे है। निगम के कामों में वह असमर्थ साबित हुए है।
शहर की सामाजिक संस्था ओर भ्रष्टाचार का खिलाफ काम कर रही डीके संस्था ने उसकी शिकायत सीबीआई और सीवीसी को की है। इसमें निगम के अफसरों पर सीधे-सीधे कंपनी को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया गया है।