
अमृतसर/चंडीगढ़, जून 2025 — श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह (Giani Raghubir Singh) द्वारा पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab and Haryana High Court) में दायर एक याचिका ने सिख धार्मिक जगत में बड़ी हलचल मचा दी है। इस याचिका के माध्यम से उन्होंने SGPC (Shiromani Gurdwara Parbandhak Committee) पर गंभीर आरोप लगाए हैं और अपने वर्तमान धार्मिक पद की गरिमा की रक्षा की मांग की है।
🛕 SGPC पर राजनीतिक हस्तक्षेप का आरोप
ज्ञानी रघुबीर सिंह ने अपनी याचिका में स्पष्ट किया है कि उन्हें 7 मार्च 2025 को श्री अकाल तख्त के जत्थेदार (Akal Takht Jathedar) पद से SGPC द्वारा हटाया गया। इसके बाद उन्हें सच्चखंड श्री दरबार साहिब (Golden Temple) का मुख्य ग्रंथी नियुक्त किया गया। उनका कहना है कि SGPC के अंदर चल रही राजनीतिक खींचतान (Internal Politics in SGPC) का असर धार्मिक फैसलों और पदाधिकारियों की नियुक्तियों पर पड़ रहा है, जो सिख परंपराओं के लिए खतरनाक है।
🔍 कोर्ट से क्या है मांग?
रघुबीर सिंह ने अदालत से आग्रह किया है कि उनके वर्तमान धार्मिक पद की गरिमा (Religious Position Dignity) को सुरक्षित रखा जाए और SGPC पर धार्मिक पदों के राजनीतिक दुरुपयोग को रोका जाए। उन्होंने यह भी कहा कि वह सिख मर्यादा के अनुसार सेवा कर रहे हैं, लेकिन SGPC की राजनीति उनकी भूमिका को प्रभावित कर रही है।
⚖️ कोर्ट जाना बना विवाद का विषय
इस पूरे घटनाक्रम ने तब और बड़ा मोड़ लिया जब दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (DSGMC) के पूर्व अध्यक्ष और दिल्ली अकाली दल (Delhi Akali Dal) के प्रधान परमजीत सिंह सरना (Paramjit Singh Sarna) ने ज्ञानी रघुबीर सिंह की याचिका पर कड़ी आपत्ति जताई।
सरना ने कहा कि “कोई भी धार्मिक पदाधिकारी सांसारिक अदालत (Secular Court) का सहारा नहीं ले सकता। यह गुरमत परंपरा (Gurmat Maryada) और सिख सिद्धांतों का खुला उल्लंघन है।” उन्होंने आगे कहा कि ज्ञानी रघुबीर सिंह ने एक ऐसे पद को अदालत में घसीटा है जो बाबा बुद्धा साहिब, भाई मणी सिंह और अन्य महान सिखों की सेवा से जुड़ा रहा है।
📢 “पंथ के पद को कठघरे में खड़ा किया गया”
सरना ने यह भी जोड़ा कि यदि कोई जत्थेदार इस तरह की याचिका दायर करता है, तो यह केवल व्यक्तिगत असंतोष नहीं, बल्कि पूरे पंथ के पवित्र संस्थान को कठघरे में खड़ा करने जैसा है। उन्होंने SGPC अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी से मांग की कि ज्ञानी रघुबीर सिंह को तत्काळ धार्मिक सेवा से हटाकर किसी प्रशासनिक कार्य में स्थानांतरित कर दिया जाए।
📜 SGPC और धार्मिक पदों की गरिमा
ज्ञानी रघुबीर सिंह के इस कदम ने एक बार फिर SGPC की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। SGPC पर पहले भी यह आरोप लगते रहे हैं कि वह शिरोमणि अकाली दल (SAD) जैसी राजनीतिक पार्टियों के प्रभाव में कार्य करती है। इससे धार्मिक संस्थानों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता प्रभावित होती है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि SGPC के अंतर्गत धार्मिक निर्णयों में राजनीति का हस्तक्षेप लगातार रहेगा, तो यह पूरे सिख समुदाय के लिए चिंता का विषय बन सकता है।
🗣️ क्या कहते हैं धार्मिक जानकार?
धार्मिक मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला केवल एक व्यक्ति की याचिका तक सीमित नहीं है, बल्कि यह SGPC की पारदर्शिता, धार्मिक मर्यादा और अकाल तख्त की गरिमा से जुड़ा हुआ है। यह भी एक चेतावनी है कि धार्मिक पदों की साख को बचाए रखने के लिए जरूरी है कि SGPC जैसी संस्थाएं राजनीति से दूर रहें।
⏳ आगे की राह
अब अदालत इस याचिका पर क्या रुख अपनाती है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। साथ ही SGPC और सिख नेतृत्व के लिए यह एक अवसर भी हो सकता है कि वे अपने संस्थागत ढांचे को दुरुस्त करें और धार्मिक पदों की पवित्रता को बरकरार रखें।