
नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में खुले नाले और असुरक्षित गड्ढे आए दिन मासूम जिंदगियों को निगल रहे हैं। कहीं तीन साल का बच्चा वॉकर समेत नाले में समा गया, तो कहीं खेलते-खेलते आठ साल का बच्चा छठ घाट के गहरे पानी में डूब गया। ऐसी घटनाओं पर प्रशासन थोड़ी देर के लिए हलचल में आता है, पुलिस मामला दर्ज कर लेती है, लेकिन जिम्मेदारी तय करने की प्रक्रिया या तो वहीं ठहर जाती है, या फिर नाले की गाद की तरह वर्षों तक जम जाती है। सवाल उठता है कि इन बच्चों की मौतों का आखिर जिम्मेदार कौन है? प्रशासन, संबंधित विभाग, या कानून की सुस्ती?
केस-1: खुले नाले ने ली मासूम की जान, पर एफआईआर में नाम नहीं
उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के रामगढ़ गांव में बीते रविवार को चार साल का एक मासूम बच्चा खुले नाले में गिर गया और उसकी मौत हो गई। पुलिस ने “लापरवाही से मौत” का केस तो दर्ज कर लिया, लेकिन एफआईआर में किसी भी अधिकारी या विभाग का नाम नहीं जोड़ा गया। यही वजह है कि पीड़ित परिवार आज तक ये नहीं जानता कि उसके बेटे की मौत का जिम्मेदार कौन है।
मृतक के पिता निजाम ने बताया कि घटना के चार साल बाद भी उस नाले की दीवार की ऊंचाई नहीं बढ़ाई गई। इतना ही नहीं, उन्हें एफआईआर की कॉपी तक नहीं दी गई। वर्ष 2023 में मुआवजे के लिए दस्तावेज मांगे गए थे, जो उन्होंने जमा किए, लेकिन आज तक कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली।
केस-2: पार्क बना मौत का कुआं, न विभाग आया न प्रशासन
10 अगस्त 2024 को रोहिणी सेक्टर-20 में डीडीए पार्क के छठ घाट पर पानी भरने से आठ वर्षीय तरुण की डूबकर मौत हो गई। पुलिस ने मामला तो दर्ज किया, लेकिन जांच के बाद भी किसी विभागीय अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई। तरुण के मामा बताते हैं कि उन्होंने कई बार थाने के चक्कर लगाए, लेकिन नतीजा सिफर रहा। दुख की बात यह है कि हादसे के बाद परिवार से मिलने कोई सरकारी प्रतिनिधि तक नहीं पहुंचा।
केस-3: ठेकेदार के खिलाफ एफआईआर, फिर भी न्याय अधूरा
03 मार्च 2024 को अलीपुर के मोहम्मदपुर गांव में दिल्ली जल बोर्ड की ओर से सीवर लाइन डालने के लिए खुदाई की जा रही थी। साइट पर न तो कोई चेतावनी बोर्ड था और न ही सुरक्षा इंतजाम। इसी दौरान रमेश चंद नामक व्यक्ति 10 फुट गहरे गड्ढे में गिर गया और उसकी मौत हो गई।
परिवार ने काफी संघर्ष किया, तब जाकर पुलिस ने संबंधित ठेकेदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। मामला फिलहाल रोहिणी कोर्ट में लंबित है। रमेश के भाई बताते हैं कि अब तक तीन तारीखों पर पेशी हुई, जिनमें से एक बार ही ठेकेदार कोर्ट में आया। मुआवजा भी नहीं मिला, और दोषी को सजा मिलने की कोई गारंटी नहीं है।
केस-4: सिंचाई विभाग के नाले ने ली तीन साल के बच्चे की जान
21 मार्च 2025 को खजूरी सी ब्लॉक में तीन साल का बच्चा अपनी बहन के साथ गली में खेल रहा था। खेलते हुए वह सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग के खुले नाले में जा गिरा और डूबकर उसकी मौत हो गई। नाले के पास कोई बैरिकेडिंग, दीवार या ढक्कन तक नहीं था। तीन महीने बीत चुके हैं, लेकिन न तो पीड़ित परिवार को मुआवजा मिला, और न ही पुलिस यह तय कर पाई है कि इस लापरवाही का जिम्मेदार कौन है।
आज भी उस नाले की दीवार टूटी हुई है, और इलाके में रोज बच्चे खेलते हैं। यानी अगली दुर्घटना का खतरा लगातार मंडरा रहा है।
प्रशासन की चुप्पी और सिस्टम की सुस्ती
इन सभी मामलों में एक बात समान है — एफआईआर में किसी का नाम नहीं होता। पुलिस “लापरवाही से मौत” की धाराएं तो लगा देती है, पर यह तय करने में महीनों और कभी-कभी वर्षों लग जाते हैं कि संबंधित विभाग या अधिकारी कौन है। और जब तक जिम्मेदारी तय होती है, तब तक पीड़ित परिवारों की उम्मीदें और आवाजें दोनों थक कर चुप हो जाती हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता आशकर हुसैन पाशा का कहना है कि, “जिम्मेदारी तय करने की प्रक्रिया बेहद धीमी है। जब एफआईआर में विभाग या अधिकारी का नाम नहीं होता, तो केस लंबे समय तक कोर्ट में लटका रहता है और आरोपी आसानी से बच निकलते हैं।”
मुआवजा पाने में भी परेशानी
रोहिणी के एसडीएम मनीष वर्मा के मुताबिक, यदि किसी व्यक्ति की मौत नाले या गड्ढे में गिरकर होती है, तो प्रशासन की ओर से 10 लाख रुपये तक का मुआवजा देने का प्रावधान है। लेकिन इस सहायता के लिए एफआईआर, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, और जांच रिपोर्ट जैसी कागजी औपचारिकताओं की जरूरत होती है। नामजद एफआईआर न होने पर मुआवजे की प्रक्रिया में बाधा आती है।