
कपूरथला : विरासती शहर कपूरथला के हालात अब ऐसे बन चुके हैं कि लोग जब भी अपने घरों से बाहर निकलते हैं तो उनका सांस लेना मुश्किल हो जाता है तथा उनकी नाक जल जाती है। जी हां, शहर की आबो-हवा इतनी दूषित हो चुकी है कभी भी लोग भयंकर संक्रमण से ग्रसित हो सकते हैं। यदि ऐसा कुछ होता भी है तो इसके लिए सीधे तौर पर नगर निगम व जिला प्रशासनिक अधिकारी भी जिम्मेदार होंगें, क्योंकि शहर की सफाई व्यवस्था इतनी बदहाल बन चुकी है कि अब तो लोगों ने उम्मीद ही छोड़ दी है कि इस समस्या का कोई समाधान होगा। अब तो लोगों का जहां सांस लेना मुश्किल हो गया है, वहीं उनका कारोबार भी बुरी तरह से प्रभावित होने लगा है।
इन दिनों शहर में जगह-जगह कूड़े के ढेर लगे हुए हैं। मानसून के मौसम के दौरान होने वाली भारी बारिश के कारण कूड़े के ढेर से भयंकर बदबू पैदा होने के कारण लोगों का सांस लेना भी मुश्किल हो गया। लोगों को अब मास्क पहनने की जरूरत महसूस होने लगी है।
कपूरथला के लिए सफेद हाथी साबित हुआ नगर निगम
वर्ष 2019 में कपूरथला से कांग्रेस के विधायक रहे नेता द्वारा अपने वर्करों को खुश करने के लिए वार्ड बंदी में इजाफा करते हुए कौंसलरों की संख्या 50 करने के साथ नगर कौंसिल कपूरथला को नगर निगम बना दिया, जो कि कपूरथला के इतिहास में सबसे खराब फैसलों में से एक माना जा रहा है। वहीं नगर निगम बनाने के इस चौंकाने वाले फैसले को राजनेताओं ने कपूरथला के विकास के लिए एक बड़ा मील का पत्थर बताया था, लेकिन इसने शहर निवासियों पर करोड़ों रुपए का बोझ डाल दिया है, जबकि शहर की हालत इस हद तक खराब हो गई है कि कपूरथला शहर उत्तर भारत के सबसे गंदे शहरों में से एक बन गया है।
इन क्षेत्रों में लगे हैं भयंकर कूड़े के ढेर
यूं तो ऐसा कोई चौंक-चौराहा नहीं है जहां कूड़े के ढेर दिखाई न दें। लेकिन शहर के प्रमुख व व्यस्त क्षेत्रों में शुमार पुरानी कचहरी परिसर के बाहर, बस स्टैंड चौंक, शालीमार बाग गेट के बाहर, पुराने अस्पताल के बाहर, कांजली मार्ग, मार्कफैड चौंक के पास के पास भयकंर ढेर लगे हैं। इसके अलावा कई शैक्षणिक संस्थानों के पास भी कूड़े के ढेर लगे हुए हैं, जिसके कारण बच्चों का स्कूलों में पढ़ाई करना मुश्किल हो गया है तथा वह किसी भी क्षण बीमारी की चपेट में आ सकते हैं।