
Krishna Janmashtami 2025: जन्माष्टमी का पर्व पूरे भारत में बड़े उत्साह और श्रद्धा से मनाया जाता है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और रात 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का उत्सव मनाते हैं। मंदिरों और घरों में लड्डू गोपाल को सुंदर सजाकर पूजा की जाती है।
खीरे से कान्हा का जन्म क्यों कराया जाता है?
जन्माष्टमी पर एक खास परंपरा होती है – खीरे से श्रीकृष्ण का जन्म कराना।
यह परंपरा बहुत ही प्रतीकात्मक और धार्मिक मानी जाती है।
- जब बच्चा जन्म लेता है तो वह अपनी मां के नाल (umbilical cord) से जुड़ा होता है।
- उसी तरह पूजा में खीरे को डंठल (stem) से जोड़े रखा जाता है।
- जैसे ही डंठल काटा जाता है, यह बच्चे के जन्म लेने का प्रतीक माना जाता है।
- यानी, खीरे से कान्हा का जन्म कराना केवल एक रस्म नहीं है बल्कि यह भगवान के जन्म को सजीव रूप में दिखाने की सुंदर परंपरा है।
खीरे से मिलने वाला संदेश
खीरे का इस्तेमाल करने से यह सिखाया जाता है कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए महंगी चीज़ों की आवश्यकता नहीं होती। सच्चे मन की भक्ति और सरलता ही सबसे बड़ा उपहार है। भगवान कृष्ण हमेशा सहजता और प्रेम से प्रसन्न होते हैं।
कैसे की जाती है यह परंपरा?
- एक ताज़ा खीरा लिया जाता है और बीच से हल्का काटा जाता है।
- उसमें छोटे लड्डू गोपाल जी को रखा जाता है।
- उन्हें पीले वस्त्र से ढककर रखा जाता है।
- ठीक रात 12 बजे खीरे का डंठल काटा जाता है।
- उसके बाद लड्डू गोपाल को खीरे से बाहर निकालकर चरणामृत से स्नान कराया जाता है।
- स्नान के बाद उन्हें झूले पर बैठाकर जन्मोत्सव मनाया जाता है।
घर में सुख-समृद्धि का वास
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, खीरा समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है।
- यह प्रक्रिया घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।
- इसे करने से घर में खुशियाँ, सौभाग्य और धन-समृद्धि आती है।