आज हम जानते हैं कि संगोल क्या है। नए संसद भवन की इमारत 28 मई को राष्ट्र को समर्पित की जा रही है। यह एक सोने की छड़ी के समान दिखाई देती है ,जिस पर नंदी जी बैठे दिखाई देते हैं। वास्तव में यह एक चांदी की छड़ी के ऊपर सोने की परत चढ़ी हुई है।
इसका संबंध भारत की स्वतंत्रता से है। जब देश आजाद हुआ तो पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसे आजादी के प्रतीक के रूप में अपने हाथ में थाम लिया। इतिहास को जानने वालों के अनुसार इसके पीछे एक इतिहास है।
अंग्रेजों के मन में एक प्रश्न था कि भारतीयों को सत्ता कैसे सौंपी जाए, केवल हाथ मिलाकर सत्ता देना ही काफी नहीं है, तब अंग्रेजों ने इस विषय पर पंडित जवाहरलाल नेहरू से चर्चा की। तो पंडित जवाहरलाल नेहरू ने यह बात तमिलनाडु के प्रसिद्ध क्रांतिकारी श्री सीराजगोपालचार्य, जो (राजाजी) के नाम से प्रसिद्ध थे, से कही। पंडित जवाहरलाल नेहरू जानते थे कि राजाजी भारत के गौरवशाली इतिहास और परंपरा के जानकार है । इसलिए, राजा जी इस मुद्दे को सार्थक रूप से हल करने में परिपक्व व्यक्ति हैं। जब पंडित जी ने राजा जी से बात की, तो राजा जी को तमिलनाडु की चोल शाही परंपरा से समाधान मिला,कथा के अनुसार,चोल राजा भगवान शिव की पूजा करते हुए संगोल देकर अगली पीढ़ी के राजा को गद्दी सौंप देते थे । माना जाता है कि चोल भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। उनके द्वारा 1000 सालो से अधिक समय से स्थापित भगवान शिव के मंदिरों में आज भी पूजा की जाती है।
राजा जी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को भी इस परंपरा का पालन करने के लिए कहा, जिसे नेहरू जी ने स्वीकार कर लिया। और उन्होंने हाथ में संगोल थामा तो नेहरू ने उनके माथे पर भस्म लगाई और माला पहनाई और पुजारी द्वारा मंत्रों का जाप किया गया।
प्रधानमंत्री मोदी के ध्यान में सांगोल कैसे आया?
1947 के बाद यह राज दण्ड इलाहाबाद संग्रालया में रखा गया। 1978 में कांची मठ के आचार्य ने इस परंपरा का जिक्र अपने एक छात्र से किया, जिन्होंने इसे प्रकाशित करवाया। जिसे तमिल मीडिया ने पिछले साल अमृत महा उत्सव के दौरान फिर से इस पर चर्चा की, जब प्रधान मंत्री मोदीके ध्यान में आया तो उन्होंने इस मामले की गहन जाँच करवाई , और पूरी प्रक्रिया के अनुसार संसद भवन के नए भवन में सांगोल को स्पीकर की कुर्सी के स्थापित करने का फैसला किया। 28 मई को होने वाले कार्यक्रम में इस संगोल को गंगाजल से इशनान कराकर स्थापित किया जाएगा.