जींद की अंशु मलिक। भारतीय महिला कुश्ती का चमकता हुआ सितारा । 57 किलो भार वर्ग की धाकड़ पहलवान। मैट पर अंशु जितनी तेजतर्रार दिखती है, पढ़ाई में इतनी ही होशियार है। बचपन में काफी नटखट थी। 12-13 साल की उम्र में पहलवानी करनी शुरू कर दी थी। तब आस-पड़ोस का उसके हमउम्र का कोई भी बच्चा घर आ जाता और घर का बड़ा सदस्य कोई यह कहता कि अंशु दिखा दे दम! इतना सुनते ही अंशु तुरंत उसे पटक देती थी यानि कमर लगा देती थी। हम उम्र के लड़कों पर भी भारी पड़ती थी।
ओलिंपिक में हार के बावजूद अंशु ने हौसल नहीं खोया और खुद को साबित कर दिखाया। 20 वर्षीय अंशु मलिक ने नार्वे में हुई विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रच दिया था। चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनीं।
अंशु के घर में खेल का माहौल शुरू से रहा है। दादा व परदादा भी पहलवानी करते थे। पिता धर्मबीर विश्व कुश्ती कैडेट खेले हैं तो ताऊ पवन हरियाणा केसरी व भारत कुमार का खिताब जीत चुके हैं। अंशु के पहलवानी के सफर के बारे में पिता धर्मबीर बताते हैं कि वह अंशु के छोटे भाई शुभम को कुश्ती करवाने लेकर जाते थे। एक दिन अंशु ने अपनी दादी वेदपति से कहा कि उसे भी कुश्ती करनी है। वह शाम को घर पहुंचा तो उनकी मां ने कहा, मेरी पोती को भी कुश्ती करवाने लेकर जाया कर। यह भी पहलवान बनेगी। उस समय अंशु छठी कक्षा में थी। यह बात वर्ष 2012 की है।
प्रैक्टिस करते प्रतिद्वंद्वी थक जाते, अंशु डटी रहती
शुरू में एक साल तक वह अपने दादा मास्टर बीर सिंह के साथ गांव के ही चौधरी भरत सिंह मेमोरियल स्पोर्ट्स स्कूल में जाती थी। धर्मबीर बताते हैं, वह खुद भी पहलवान रहे हैं। इसलिए कुश्ती की बारीकियां जानते हैं। सालभर बाद उन्होंने देखा कि बेटी में ज्यादा टैलेंट है और अपना पूरा फोकस बेटी पर कर दिया। अंशु के पहले कोच जगदीश श्योराण रहे हैं और गांव में अब भी वही कोचिंग देते हैं। उनके साथ मिलकर बेटी के खेल को निखारा। सुबह-शाम जब वह मैट पर उतरती है तो खूब पसीना बहाती है। साथी पहलवान थक जाती हैं, लेकिन अंशु सबसे बाद में हटती है।
प्रैक्टिस करते प्रतिद्वंद्वी थक जाते, अंशु डटी रहती
शुरू में एक साल तक वह अपने दादा मास्टर बीर सिंह के साथ गांव के ही चौधरी भरत सिंह मेमोरियल स्पोर्ट्स स्कूल में जाती थी। धर्मबीर बताते हैं, वह खुद भी पहलवान रहे हैं। इसलिए कुश्ती की बारीकियां जानते हैं। सालभर बाद उन्होंने देखा कि बेटी में ज्यादा टैलेंट है और अपना पूरा फोकस बेटी पर कर दिया। अंशु के पहले कोच जगदीश श्योराण रहे हैं और गांव में अब भी वही कोचिंग देते हैं। उनके साथ मिलकर बेटी के खेल को निखारा। सुबह-शाम जब वह मैट पर उतरती है तो खूब पसीना बहाती है। साथी पहलवान थक जाती हैं, लेकिन अंशु सबसे बाद में हटती है।
2016 में जीता पहला गोल्ड
राष्ट्रीय स्तर पर पहला गोल्ड मेडल 2016 में नेशनल स्कूल गेम्स में जीता था। मां बताती है कि उस मेडल की अंशु को इतनी खुशी हुई थी कि अक्सर उसको निहारती थी। इसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और मेडल जीतने की धुन लग गई। धर्मबीर कहते हैं कि हर प्रतियोगिता में साए की तरह बेटी के साथ रहता हूं। अंशु ने ज्यादातर मुकाबले जीते हैं। कहीं हार भी जाती है तो उसका हौसला नहीं टूटने देता हूं। अब टोक्यो ओलिंपिक की ही बात ले लीजिए। बेटी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई। एक बार हमें भी निराशा हुई, क्योंकि सारे देश को उम्मीद थी। मैंने बेटी का हौसला बढ़ाया और कहा कि टोक्यो तो हमारे टारगेट में ही नहीं था । हमारा लक्ष्य तो पेरिस ओलिंपिक है। यह तो उसकी मेहनत थी कि ओलिंपिक से पहले सभी मुकाबले जीते और 19 साल की उम्र में 57 किलो के सभी पहलवानों को हराते हुए टोक्यो पहुंच गई।
नार्वे में दिखा अंशु का जबरदस्त खेल
मां मंजू कहती हैं कि बेटी जब नार्वे में विश्व कुश्ती चैंपियनशिप के लिए गई थी, तब उसे कहा था कि टोक्यो को भूल कर अपना असली खेल दिखाना है। बेटी ने रजत पदक जीता। हमें तो अखबार-टीवी वालों से ही पता चला कि विश्व कुश्ती चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने वाली वह देश की पहली महिला पहलवान बन गई। हंसते हुए मां कहते हैं कि अब तो बिटिया 20 साल की ही है। भगवान का शुक्र रहा तो ऐसे कई इतिहास रचेगी । मां मंजू और पिता धर्मबीर दोनों दावा करते हैं कि पेरिस ओलिंपिक से बेटी खाली हाथ नहीं आएगी।
लग्न इतनी कि सुबह साढ़े चार बजे उठ जाती थी
मां मंजू कहती है कि अंशु ने 12 साल की उम्र में जब से खेलना शुरू किया, तब से एक दिन भी यह नहीं कहा कि आज वह प्रैक्टिस करने मैट पर नहीं जाएगी। पिता धर्मबीर कहते हैं शुरुआत में दो साल तक सिर्फ शाम के समय प्रैक्टिस करती थी। क्योंकि सुबह स्कूल जाना होता था। लेकिन 2014 में सुबह-शाम की प्रैक्टिस शुरू करवाई तो उसके बाद आज तक सुबह कभी उठाने की जरूरत नहीं पड़ी। चाहे कितनी ही थकी हुई हो, सुबह साढ़े चार बजे अपने आप उठ जाती थी। फ्रेश होकर दादा व पिता के साथ प्रैक्टिस करने जाती। उसकी इसी लग्न का नतीजा था कि जूनियर आयु वर्ग में होते ही थी पंजाब में सीनियर नेशनल कुश्ती चैंपियनशिप में खेली और गोल्ड मेडल जीता।
बीए फाइनल के पेपर दिए, नौकरियों के आ रहे आफर
अंशु मलिक ने बताया कि उसने जाट कालेज रोहतक से बीए फाइनल के पेपर दे दिए हैं। अभी परिणाम नहीं आया है। आगे भी वह पढ़ाई जारी रखेगी। हरियाणा सरकार खिलाड़ियों को सीनियर कोच लगा रही है। उसे रेलवे से सीनियर टीटी या सीनियर क्लर्क और फौज से नायब सूबेदार का आफर आया है। कहां ज्वाइन करना है, अभी इस पर निर्णय नहीं लिया है। अंशु ने बताया कि उसे पैराग्लाइडिंग व बर्फ में घूमने का शौक है। लेकिन कहीं भी घूमने का मौका नहीं मिल रहा है। खाने के शाैक की बात पर अंशु बताती है कि परांठे खाना ज्यादा पसंद है। बादाम, मुनक्का किशमिश सहित अन्य ड्राइ फ्रूट प्रैक्टिस रेगुलर लेती हूं। दिन में लगभग दो किलो दूध व 200 ग्राम घी डाइट में शामिल रहता है।