शिरोमणि अकाली दल को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) प्रमुख मायावती ने 2024 का लोकसभा चुनाव पूरे देश में अकेले लड़ने का ऐलान किया, जिसके बाद पंजाब में राजनीति गरमा गई है. इसके साथ ही यह भी साफ हो गया है कि पंजाब में बसपा की राह अब शिरोमणि अकाली दल से अलग होगी. सूत्रों के मुताबिक, दोनों पार्टियों के बीच काफी समय से रिश्ते ठीक नहीं चल रहे थे.
हालांकि, दोनों पार्टियों के प्रदेश नेताओं की ओर से अभी तक कोई बयान नहीं आया है. न ही अभी तक किसी पार्टी का किसी अन्य पार्टी से कोई समझौता हुआ है
2022 विधानसभा चुनाव से पहले गठबंधन
पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान तीन कृषि कानूनों पर विवाद के बाद बीजेपी और अकाली दल के रास्ते अलग हो गए थे. इसके बाद अकाली दल और बसपा के बीच गठबंधन हो गया. दोनों पार्टियों ने मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था. जिसमें अकाली दल ने 97 सीटों पर चुनाव लड़ा और बसपा ने 20 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. नवांशहर से बसपा के नछत्तर पाल ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए जीत हासिल की. वहीं अकाली दल ने 97 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे लेकिन उसके खाते में सिर्फ तीन सीटें आईं. लेकिन दोनों का रिश्ता काफी समय से ठीक नहीं चल रहा था.
बसपा को वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी
इतना ही नहीं 2017 के मुकाबले इस साल बीएसपी का वोट शेयर भी बढ़ा है. 2017 में जहां बीएसपी को 1.5 फीसदी वोट मिले थे, वहीं 2022 में बीएसपी का वोट शेयर बढ़कर 1.77 फीसदी हो गया. अकाली दल का वोट प्रतिशत लगातार घट रहा है.
1997 के बाद बसपा ने खाता खोला
पिछले चुनावों की बात करें तो 1997 के बाद 2022 के चुनाव में बसपा ने पहली बार पंजाब में अपना खाता खोला। 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 11 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन एक को छोड़कर कोई भी सीट जमानत नहीं बचा सकी. 2012 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो बसपा ने 109 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन सभी की जमानत जब्त हो गई थी.
अकाली दल फिर अकेला
बसपा के इस फैसले के बाद अकाली दल एक बार फिर अकेला पड़ गया है. 2021 में कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन के दौरान अकाली दल ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया था. फिर भी अकाली दल अकेला रह गया. आख़िरकार उन्हें 2022 के चुनाव में बसपा का समर्थन मिल गया, जो अब मायावती की घोषणा के बाद फिर से अलग होगा।