
आज के समय में हर चीज में एडवांस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हो रहा है, जिससे लोगों को ज्यादा सुविधा मिल रही है। लेकिन नई कारों में जिस हिसाब से डैशबोर्ड पर टच स्क्रीन लगाई जा रही है, ये ड्राइवरों के लिए परेशानी का कारण भी बन रही है।
ड्राइवर क्यों हैं परेशान?
नई कारों में भले ही एडवांस सेफ्टी और इन्फोटेनमेंट फीचर्स डाले जा रहे हैं, लेकिन टच स्क्रीन की मदद से कार के फीचर्स को कंट्रोल करना ड्राइवर के लिए आसान नहीं है। इन स्क्रीन्स की वजह से ड्राइवर की नजर सड़क से ज्यादा डैशबोर्ड पर होती है, जिससे दुर्घटना भी हो सकती है।
पहले जो काम बटनों से चंद सेकेंड में हो जाता था, उससे ज्यादा समय अब स्क्रीन पर मेन्यू खोजने और फोकस करने में लग जाता है। इससे ड्राइविंग मुश्किल हो रही है, साथ ही हादसों का जोखिम भी बढ़ रहा है
ब्रिटेन की मोटरिंग मैगजीन की स्टडी में क्या पाया गया?
- ब्रिटेन की वीकली मोटरिंग मैगजीन ऑटो एक्सप्रेस की स्टडी में 10 लोकप्रिय के टच स्क्रीन सिस्टम की टेस्टिंग की गई।
- ड्राइवर्स को पांच सामान्य टास्क जैसे नेविगेशन सेट करना, रेडियो ट्यून करना और हीटेड सीट ऑन करना का टास्क दिया गया था।
- स्टडी में स्कोडा, मर्सिडीज और मिनी जैसी कंपनियों के सिस्टम सबसे आसान और कम समय में ऑपरेट होने वाले मिले।
- जेनेसिस, प्यूजो और फोर्ड जैसी कंपनियां इस टास्क में पीछे रह गई।
- स्कोडा के ड्राइवर ने 4.8 सेकंड में ये काम कर लिया, जबकि जेनेसिस के ड्राइवर को 13.6 सेकंड लगे।
साल 2026 से ब्रिटेन में बदलेगा सेफ्टी नियम
जिस प्रकार से जटिल सिस्टम गाड़ियों में डाले जा रहा हैं, इससे ड्राइवरों की नाराजगी बढ़ रही है और इस कारण से कारों की बिक्री पर भी असर पड़ सकता है। ड्राइवर मॉनिटरिंग टेक्नोलॉजी पर काम करने वाली कंपनी सीइंग मशीन्स के चीफ सेफ्टी ऑफिसर डॉ. माइक लेने ने कहा कि ‘ह्यूमन फैक्टर डिजाइन’ ड्राइवरों की जरूरतों को समझकर टेक्नीक को सहज बनाता है।
उन्होंने कहा कि स्कोडा ने इसे अपनाया और अपनी ‘स्मार्ट डाइल्स’ के साथ फिजिकल बटनों को भी गाड़ियों में डाला है। माइक ने चेतावनी देते हुए कहा कि खराब डिजाइन ड्राइवरों की मंजूरी वाले टेस्ट में फेल हो रहे हैं।
2026 से यूरोप में बदलेगा सेफ्टी नियम
बता दें, साल 2026 से यूरोप की कार सेफ्टी एजेंसी (यूरोपियन न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम) नए सेफ्टी प्रोटोकॉल लागू करेगी। इस प्रोटोकॉल के तहत गाड़ियों में हॉर्न, वाइपर या इंडिकेटर के लिए फिजिकल बटन नहीं होंगे, तो उन्हें कम सेफ्टी स्कोर मिलेगा।
जगुआर लैंड रोवर में ‘ह्यूमन मशीन इंटरफेस’ के एक्सपर्ट डॉ. ली स्क्राइपचुक ने कहा कि टेक्निक का मकसद ड्राइविंग को बेहतर बनाना है, न कि ड्राइवर को थकाना।
बड़ी-बड़ी कंपनियां वापस डाल रही फिजिकल बटन
ऑटो एक्सप्रेस के संपादक पॉल बर्कर ने कहा, “एक स्क्रीन में सारे कंट्रोल्स डालकर कंपनियां डिजाइन और प्रोडक्शन में पैसे बचाती हैं। अब फिडबैक के बाद फॉक्सवैगन जैसी कंपनियां फिर से फिजिकल बटन ला रही है।”
इन बदलावों को देखते हुए ऐसा माना जा सकता है कि कंपनियों को यह समझ आ रहा है कि ड्राइवर की संतुष्टि और सुरक्षा के बिना कोई भी टेक्निक लंबी नहीं टिक सकती है। टच स्क्रीन अपनी जगह ठीक है, लेकिन अब समय आ गया है कि कंपनियां संतुलित, आसान और सेफ डिजाइन की ओर लौट जाए।